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हमारे जीवन में आने वाली सबसे बड़ी बाधा

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दुःख लेने का संस्कार

ब्राह्मण जीवनके तीव्र पुरषार्थ में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है दुख लेने का संस्कार




जीवन में दुःख के  मुख्य  दो कारण है :
फीलिंग के रूप में दुसरे द्वारा दिए गये दुःख को  ले लेना  | 
अपने कमजोर  स्वभाव के कारण किसी  को दुःख देना |


हमने अधिकांश दुःख देना तो छोड़ दिया है पर  जाने अनजाने दुसरे के  दुःख देने  के  संस्कार वश दुसरे से दुःख ले लेते है |


दुःख हमें उसका वयवहार  नहीं देता वास्तव में उस के बारे में सोचना हमें दुःख देता है |

जब दुःख  का स्टॉक आ जाता है तो कहा जाता है  | जो दुःख लिया वो किसी न किसी  को जायेगा भी |

हमारे  मन में ये दुःख की फीलिंग  लेने  के कारण हम दुखी  होते है


इसी कारण से हम किसी न किसी के प्रति बद्दुआ निकाल देते है और पाप का खाता बना लेते है |



जैसे हाथी के कान में छोटी सी चींटी चली जाये तो वह भी उसे मार डालती है वैसे ही दुसरे द्वारा किये गये दुर्व्यवहार या दुःख देने के संस्कार को अपनी बुधि व् मन में जगह देने के कारण हमारा विवेक न नस्ट हो जाता है |


ये ऐसा ही है जैसे किसी दुसरे के पाप की सजा खुद को देना |


अपने दिमाग रूपी फूलो के गुलदस्ते में दुसरे द्वारा दिया कीचडा भर लेना उसे कचरा पात्र बना लेना |








बाबा (परमात्मा) की श्री मत है न दुःख देना है  और न ही दुःख लेना है |

किसी भी आत्मा का कैसा भी part देख … क्या, क्यों, ना कर उस आत्मा के प्रति 100% शुभ-भावना रख, स्वयं के प्रति full attention रखना है … क्योंकि drama बिल्कुल accurate बना हुआ है।

बाबा कहते हैं … बच्चे, सब अच्छा है … जो कुछ भी हो रहा है, सब अच्छा है … सभी का कल्याण हो – जिन बच्चों के अन्दर यह संकल्प हैं, वो ही स्व-कल्याणी से विश्व-कल्याणी बन सकते हैं…।
शुभ भावना, शुभ कामना … और हर आत्मा के प्रति और हर परिस्थिति में positive संकल्प होना बहुत ज़रूरी है…। 

परन्तु साथ ही साथ drama की समझ होनी भी बहुत ज़रूरी है अर्थात् loveful के साथ-साथ lawful होना…।
जिस तरह, इस समय, बाप अपना part play कर रहा है, अर्थात् बच्चों को बाप-समान बनाने के लिए बाप का loveful के साथ-साथ lawful होना भी बहुत ज़रूरी है, क्योंकि आत्मायें कमज़ोर अर्थात् नम्बरवार होती हैं…।

इस समय स्थिरता के साथ-साथ समझ होना भी अति आवश्यक है, क्योंकि यह बिल्कुल तमोप्रधान दुनिया और तमोप्रधान आत्मायें हैं, इनके बीच रहते स्वयं की समझ के साथ ही अर्थात् हर आत्मा के साथ किस रीति adjust होना है, इस समझ के साथ ही आप सदा स्थिर रह सकते हो।

आपको यह ज्ञान होना चाहिए कि मेरे अन्दर हर तरह की आत्मा के लिए, सूक्ष्म रीति स्नेह और सहयोग देने की भावना हो, ताकि वो अपना हिसाब-किताब सहज रीति चुक्तु कर अपनी मंज़िल पर पहुँच सके…।



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